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देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति प्रथमोऽध्यायः
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति एकादशोऽध्यायः
देवी माहात्म्यं दुर्गा सप्तशति सप्तमोऽध्यायः
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
श्री महा लक्ष्मी अष्टोत्तर शत नामावलि
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनोच्चाटनादिकम् ।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से विपदाएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं और समस्त कष्ट से मुक्ति मिलती है। यह सिद्ध स्त्रोत है और इसे करने से दुर्गासप्तशती पढ़ने के समान पुण्य मिलता है।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
जाग्रतं हि महादेवि जप ! सिद्धिं कुरूष्व मे।।
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न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
देवी माहात्म्यं दुर्गा द्वात्रिंशन्नामावलि